तुम पढ़ते,
तो किताबों के गट्ठर में
एक दो किताबें
मैं भी लिखता तुम्हारे लिये।
तुम देखते,
तो गली के नुक्कड़ पे
सुबह शाम बैठा
मैं भी दिखता तुम्हारे लिये।
मैं भी लाता सिनेमा की टिकटें खरीद कर।
तुम हँसते,
खुश होते मेरे होने से
लड़ते मुझसे मेरे समय के लिए
तो मैं हारता तुम्हारे लिये।
युद्ध करता अन्दर
जीतता मैं खुद से
बहुतों का करता सर कलम
और मारता तुम्हारे लिये।
मैं भी लाता सिनेमा की टिकटें खरीद कर।