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Channel: p4poetry » Vikash
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ये कविता अधूरी कविता है

मेरी कविता एक साधारण कविता है. इसे किसी कोश में शामिल नहीं किया जायेगा. कवि सम्मेलनों में इसे तालियाँ भी नहीं मिलेगी. पुरस्कारों की दुनिया और इस कविता की दुनिया में आसमान जमीन का फर्क है. मेरी कविता एक...

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आओ बैठें बात करें

http://p4poetry.com/wp-content/uploads/2012/04/aao-baithen-baat-karen.mp3 आओ बैठें बात करें वो जो अपने साथ करे हैं हम भी किसी के साथ करें. वादे करना भी आता है झूठ से बचपन का नाता है गली, मोहल्ले, गाँव...

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हम मिलेंगे

अच्छे और बुरे से परे कोई जगह होगी जहाँ हम वहाँ मिलेंगे. ठहरेंगे थोड़ी देर झुककर पियेंगे बादलों से फिर अपने रास्ते चलेंगे. जहाँ कलियों के साथ कांटे नहीं खिलते जहाँ पैमाने बदलने से मापदंड नहीं हिलते....

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वो

वो अंधे हैं, वो बहरे हैं और दिखते थोड़े गहरे हैं चलता रहता शहर भले पर वो कुर्सी पर ठहरे हैं। राज है उनका, धन है उनका नाग के जैसा फन है उनका सर के ऊपर हलके हैं वो पर हाथी सा तन है उनका। सबका खोया, यहाँ...

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रोटी

तुम्हारे कटोरे सोने के हों और तुम उनमें जवाहरातों की सौगात बटोरो फिर भी तुम्हारा साथ निबाहता हूँ। क्यूंकि मैं – अपने काठी कटोरे में रोटी और अपने बटोरे में चाँद चाहता हूँ। – दुनिया और रोटी दोनों एक जैसी...

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वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं

वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं ये देखो इस तरफ हमारे भाग जल रहे हैं। अपनी अकल के ताले, खोलोगे क्या कभी भी? गूंगों के इस शहर में, बोलोगे क्या कभी भी? हक़ है जो तुम्हारा, बेशक़ है जो तुम्हारा उसके...

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सिनेमा की टिकटें

तुम पढ़ते, तो किताबों के गट्ठर में एक दो किताबें मैं भी लिखता तुम्हारे लिये। तुम देखते, तो गली के नुक्कड़ पे सुबह शाम बैठा मैं भी दिखता तुम्हारे लिये। मैं भी लाता सिनेमा की टिकटें खरीद कर। तुम हँसते,...

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उससे पहले कि मैं बीत जाऊँ

एक कटोरा काढ़ मुझे रख लो उससे पहले कि मैं बीत जाऊँ। उससे पहले कि कोई चिड़ियाँ मुझे ले उड़े या हवा झिटक दे कहीं दूर या ढँक दें पत्ते अपने पीलेपन से या रात की सर्दी में रीत जाऊँ। कैद कर लो इतिहास होते...

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अनजान

जब बहुत बहुत वक्त बीत चुका होगा जब हमें एक दूसरे के नाम के अलावा कुछ पता नहीं होगा जब जाने पहचाने लम्हों, जगहों, कहानियों, कवितायों और फिल्मों के ऊपर जम चुकी होगी धूल जब तुम और मैं बिलकुल अनजाने हो...

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तुम्हारे असमंजस से मरा हूँ मैं

१. जब तुम अपने घरों में बंद देख रहे होते थे बड़ी जगमगाती स्क्रीनों पे खबर मेरे घरों पे गिरते बमों की और कर रहे थे तय कौन सही है कौन गलत – किसकी भर्त्सना करनी है और किसको सही ठहराना है. तब उनके बारूद से...

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