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Channel: p4poetry » Vikash
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वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं

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वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं
ये देखो इस तरफ हमारे भाग जल रहे हैं।
अपनी अकल के ताले, खोलोगे क्या कभी भी?
गूंगों के इस शहर में, बोलोगे क्या कभी भी?
हक़ है जो तुम्हारा, बेशक़ है जो तुम्हारा
उसके लिए ये दुनिया, छोड़ोगे क्या कभी भी?
कहने को वो हमारे ही साथ चल रहे हैं
पाँवों तले के उनके रस्ते बदल रहे हैं।
वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं
ये देखो इस तरफ हमारे भाग जल रहे हैं।

क़दमों में उनकी दुनिया, सपनों में अपने रोटी
उनकी कदों के आगे, औकात अपनी छोटी
उन सा कोई मसीहा – ना है, ना कोई होगा
ईमाँ के वो शहँशाह – सच-झूठ के दारोगा।
आँचल की आड़ से वो, बोलेंगे हमसे सुनना
वादों के बटखरों से, तोलेंगे हमको सुनना
रखते हैं अपने बाजू, वो सोने के तराजू
हमारे घरों की मिट्टी फिर भी निगल रहे हैं।
वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं
ये देखो इस तरफ हमारे भाग जल रहे हैं।

दुनिया तो उनकी है ही, हम भी हैं उनके नौकर
जीना हमें भी है ही, सर पटक के रो कर।
वो कहेंगे तब हम, उठ्ठेंगे जी सकेंगे
वो कहेंगे तब हम, आंसू को पी सकेंगे
हम कहेंगे वो ही, जो होगी उनकी मर्जी
वो कहेंगे तब हम होठों को सी सकेंगे।
धुप में झुलसकर, हम हटायें पत्थर
उनके कहे से लेकिन नक़्शे बदल रहे हैं।
वो देखो उस तरफ तो चिराग़ जल रहे हैं
ये देखो इस तरफ हमारे भाग जल रहे हैं।


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