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ये कविता अधूरी कविता है

मेरी कविता एक साधारण कविता है.
इसे किसी कोश में शामिल नहीं किया जायेगा.
कवि सम्मेलनों में इसे तालियाँ भी नहीं मिलेगी.
पुरस्कारों की दुनिया और इस कविता की दुनिया में
आसमान जमीन का फर्क है.

मेरी कविता एक शुष्क कविता है.

१.
जब कोई – पीछे मुड़ के देखेगा अपना अतीत
और पायेगा कुछ छूटे हुए लोगों को
और मिलेगा अपनी कल्पना में – अटके हुए रिश्तों से
और रोक लेगा अपनी उंगलियाँ
उन संदेशों को लिखते – जो बन सकतीं थीं एक पुल –
भूत और वर्तमान के चेहरों के बीच.

बड़े विराम के संकोच के तले –
जब और बढ़ता जाएगा विराम.
और जब तटस्थता से नहीं चलेगा काम –
और जब सूखेगा किसी की सूखी आँखों में
जन्म लेने के पहले ही एक समंदर
– तब समायेंगे उसके वाष्प मेरी कविता में
और तब ऊष्ण होगी भावनाएं.

और अभिव्यक्ति की असमर्थता में
जब किसी के स्वर गिरेंगे लड़खड़ाके
– तब मेरी कविता संभालेगी उन्हें
लगाएगी मलहम छिले हुए घुटनों पर
और फिर बंद हो जाएगी चुपचाप एक डायरी में.

२.
मेरी कविता निहायती निजी कविता है.

इस कविता को समाज और देश से कोई मतलब नहीं
इसे बस अपनी फ़िक्र है – यह एक स्वार्थी कविता है.
ये कविता भूखे नंगों की ओर नहीं देखती
ये बस अपने अन्दर झांकती है –
इसे अपने रोजगार, अपनी मजदूरी
और अपने पेट से मतलब है.

दूर और दूर वाली दिल्ली के बलात्कार
इसे चिंतित नहीं करते.
इसे बस उतनी ही सुरक्षा चाहिए
जितने इसके शब्दों का विस्तार है.
सरकारों द्वारा किसानों की हड़पी जमीन
और आदिवासियों के विस्थापन की इसे जानकारी नहीं.
इसे बस अपने खेतों की चिंता है
अपने फसलों का न जलना
– इसकी सुरक्षा की परिभाषा है.

मीडिया के जोर की क्रान्ति का ये हिस्सा नहीं
संसद, विधेयक और काले धन के बारे में
इसमें विचार नहीं पनपते.
ये कविता समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य के प्रति
– उदासीन कविता है.

३.
माँ-बाप, स्कूल-कालेज, पंडित-पादरी-मुल्ला
आपको इस कविता से दूर रहने की सलाह देंगे.
इस कविता में गन्दगी है.

इस कविता में औरत सिर्फ औरत नहीं
सिर्फ माँ, बहन और देवी नहीं –
बसों में चिकोटी काटी जाने वाली
सड़कों पे घूरी जा सकने वाली
पूरे कपड़ों में भी नंगी दिखने वाली एक वस्तु भी है.
इस कविता में नपुंसक हैं – और वेश्याएं भी.

ये कविता बुद्धिजीवियों एवं सुसंस्कृतों की नहीं है
ये कमीनी गलियों और नाम न ली जा सकने वाली
मुहल्लों में रहती है – पलती है, पनपती है.
सभ्य लोगों के लिए ये ‘एग्झिस्ट’ नहीं करती.
अच्छे सम्मानित सम्पादक-पत्रकार के गुटों में
पुलिसिया अफसरों की कॉकटेल पार्टियों में
राजनयिकों के रिपोर्ताज में
और भूगोल की किताब के नक़्शे पे – गौण है.

ये कविता अदृश्य कविता है.
पंचवर्षीय योजनायें इसके लिए नहीं बनती.


ये कविता अधूरी कविता है.
कमजोर कवि की कलम इससे ज्यादा नहीं लिख सकती.


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