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Channel: p4poetry » Vikash
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वो

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वो अंधे हैं, वो बहरे हैं
और दिखते थोड़े गहरे हैं
चलता रहता शहर भले
पर वो कुर्सी पर ठहरे हैं।

राज है उनका, धन है उनका
नाग के जैसा फन है उनका
सर के ऊपर हलके हैं वो
पर हाथी सा तन है उनका।

सबका खोया, यहाँ पड़ा है
भूख बड़ी है, शौक बड़ा है
दांत बड़े हैं नाखून लम्बे
नाम के उनके खौफ़ बड़ा है।


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